वो लड़की जिससे मेरी बातचीत यदा-कदा ही हुई थी आज मेरे ख्यालों में बार-बार आ रही थी। मुझे नहीं पता कि मेरी सोच की दिशा क्या थी लेकिन हर लम्हा वो अपने चित-परिचित अंदाज़ में मेरे आसपास से गुज़र जाती। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें जैसे मुझसे लुकाछिपी कर रहीं थीं। आज से पहले उसके बारे में इतना शायद ही सोचा होगा। मेरी रूह ये सोचकर कांप जाती कि उसके घर का मंजर कैसा होगा, उसके मां-बाप पर क्या बीती होगी जिनकी जवान बेटी उनसे इस तरह जुदा हो गई, पूछते होंगे वो खुदा से कि आखिर उन्हें कौन से गुनाह की सज़ा मिली है। आफिस में जब भी वो मेरे पास से गुजरती, उसका हेयरस्टाइल, उसका काजल, उसका ड्रेस हमेशा ध्यान आकर्षित करता। अक्सर वो पारंपरिक सूट में नज़र आती थी। नाम के अनुरूप वो व्यवहार से भी सौम्या थी। यकीं नहीं होता कि कल तक वो शांत सी दिखने वाली लड़की एक भयानक हादसे का शिकार हो चुकी है। उसकी सुनहरी चप्पलें जिन्हें कम से कम मैंने चार या पांच बार तो देखा ही था, उसकी वही चप्पलें गाड़ी में पड़ी थीं, उसकी आखिरी निशानी के तौर पर।दिमाग बार-बार सोचता है कि आखिर दस मिनट में कैसे एक अच्छी भली जिंदगी एक बेजान बुत में तब्दील हो सकती है? हर अख़बार में उसकी तस्वीर के साथ बोल्ड लेटर्स में उसकी मौत की ख़बर छपी है। चैनलों और अखबारों में उसकी श्रद्धांजलि की ख़बरें चलती रहीं...अभी उसकी उम्र ही क्या थी? क्या-क्या ख्वाब संजोए होंगे उसने भविष्य के लिए, मां बाप ने भी बहुत कुछ सोचा होगा उसके लिए, लेकिन अब वो कैसे खुद को समझा पाएंगे कि ताउम्र उन्हें उसके बगैर ये पहाड़ सी जिंदगी जीनी है... यही सोचते सोचते मैं फिर मसरूफ हो गई ख़बर की दुनिया में....
Wednesday, October 1, 2008
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