Friday, April 6, 2012

Hindi Blogosphere: ब्लॉगवाणी Blogvani Hindi Agregator

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इम्तिहान में फेल हो गए नेताजी!

लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद को मंदिर की तरह पूजा जाता है। ज़ाहिर है इसमें बैठे सांसदों की ज़िम्मेदारी भी बहुत बड़ी है कि जिस जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है उसकी तरक्की के लिए वो कानून बनाए और अपने इलाके के विकास कार्यों के लिए मिले पैसों का पूरा-पूरा इस्तेमाल करें। वैसे तो हमारे ज्यादातर माननीय सांसद इस सांसद विकास के लिए बड़ी-बड़ी बातें किया करते हैं लेकिन जब उसी से जुड़ी सांसद निधि खर्च करने की बात आती है तो पता नहीं क्यों बिदक जाते हैं।एमपीलैड्स, वो स्कीम है जिसके तहत हर साल सांसदों अपने इलाके में विकास कार्य कराने के लिए 5 करोड़ रुपये आबंटित होते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं लालू जी की। लालू जी संसद में कॉमेडियन का किरदार तो बखूबी निभाते हैं लेकिन 15वीं लोकसभा के गठन के तीन साल बाद भी अपने संसदीय क्षेत्र के लिए एक फूटी कौड़ी नहीं खर्च कर पाए। इसी फेहरिस्त में जनता दल (सेक्यूलर) के एच डी कुमारास्वामी, बीजेपी के कीर्ति आज़ाद और महाराष्ट्र से एनसीपी के सांसद संजीव गणेश नायक भी शुमार हैं जिन्होंने सांसद निधि से कुछ भी खर्च नहीं किया।

ग़ौरतलब है कि 73 सांसद ऐसे हैं जो सांसद निधि से 33% भी खर्च नहीं कर पाए यानि अपने इम्तिहान में पहले ही फेल हो गए। पीएसी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा कि तमाम प्रोजक्ट्स के पूरा ना होने और सांसद निधि से बेहद कम रकम खर्च किया जाना बेहद निराशाजनक है यानि जिस उद्देश्य के साथ ये स्कीम लाई गई वो ही धुमिल होता नज़र आ रहा है।

हालांकि कुछ कर्मठ सासंद मानते हैं कि उनकी सक्रियता के बावजूद लालफीताशाही की वजह से सांसद निधि की रकम मिलने में काफी वक्त ज़ाया हो जाता है लेकिन लालू और कुमारास्वामी जैसे सांसद इसकी आड़ नहीं ले सकते क्योंकि उन्होंने अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए कोई सक्रियता ही नहीं दिखाई।

कांग्रेस के कमलनाथ और बीजू जनता दल के ब्रहतुहरी महबात जैसे तत्पर सांसदों ने जनहित में सांसद निधि से 97 % से 100 % तक रकम खर्च की।

ज्यादातर राज्यों में सांसद निधि से जितना पैसा मिलता है उसका 80 फीसदी तक इस्तेमाल हो जाता है लेकिन दिल्ली में ये आंकड़ा घटकर 76 % ही रह जाता है। 20 साल पहले ये स्कीम आई थी लेकिन हैरानी वाली बात ये है कि अब तक एक बार भी विश्वसनीय तरीके से लेखा जांच नहीं हुई है(internal audit)

गौरतलब है कि अपने इलाके के विकास की बात तो दूर सांसद अच्छे कानून बनाने का समय भी शोरशराबे, हंगामे, वॉकआउट, राजनीतिक छींटाकशी करने में बर्बाद कर देते हैं। अक्सर हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही ही नहीं चल पाती और कीमती वक्त ज़ाया हो जाता है।

Citizens Report on Governance and Development का ये आंकड़ा देखिए ।

संसद में बर्बाद हुआ वक्त

11वीं लोकसभा- 5.28%

12वीं लोकसभा-10.66%

13वीं लोकसभा-22.4%

14वीं लोकसभा-38%

14वीं राज्यसभा-46%

ये हाल तब है जब हर साल संसद चलाने के खर्चे में भारी इज़ाफा होता जा रहा है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक संसद की कार्यवाही में प्रति घंटे 25 लाख का खर्च आता है और सदन में काम के घंटों के हिसाब से देखें तो प्रतिदिन 2 करोड़ रुपये बर्बाद कर दिए जाते हैं, वो पैसा जो आम जनता से टैक्स के ज़रिए वसूला जाता है।

सांसदों की गैरहाज़िरी भी एक बड़ा मसला है। कोरम पूरा ना हो पाने के अहम मसलों पर चर्चा ही नहीं हो पाती और चर्चा हो भी तो अक्सर वॉकआउट के बाद बहुत कम सांसदों की मौजूदगी में चर्चा होती है।

सदन की कार्यवाही शुरू चलाने के लिए सदन में कम से कम 10 प्रतिशत सांसदों की उपस्थिति जरूरी होती है जिसे कोरम कहते हैं लेकिन दुख की बात है कि सदन में कम से कम ..... बार हुआ कि कोरम पूरा नहीं हुआ और सांसदों को घंटी बजाकर यह बताना पड़ा कि आपको सदन में आना चाहिए।

साल 2010 की बात करें तो शीतकालीन सत्र में चर्चा करने के समय में से सिर्फ 5.3% का इस्तेमाल हुआ वहीं राज्यसभा में ये घटकर 2.1% रह गया।

ज़ाहिर है संसद का कीमती वक्त और जनता का पैसा बर्बाद करने वाले माननीय सांसद जनता के प्रति कितने ज़िम्मेदार हैं। व्यक्तिगत हित साधने में लगे सांसद देश के विकास के लिए क्या काम करेंगे ये फैसला आप खुद ही कर लीजिए।